सम्राट अशोक के शिलालेखों के बारे में हमने आपको जानकारी देते हुए बताया था कि उनके शिलालेखों को 5 भागों में बांटा गया है जिनकी जानकारी हम आपको आपको अलग-अलग 5 लेखों में देंगे।
सो इस लेख में हम आपको पहली प्रकार के शिलालेखों के बारे में जानकारी देंगे जिन्हें चतुदर्श शिलालेख, 14 शिलालेख वाली चट्टाने जा फिर चौदह बृहद् शिलालेख के नाम से भी जाना जाता है।
अंग्रेज़ी में इन्हें Major Rock Edicts या Fourteen Rock Edicts कहा जाता है।

पहले एक जरूरी बात समझें
इन शिलालेखों में क्या संदेश दिए गिए है इससे पहले समझें कि 14 शिलालेख वाली चट्टानों का क्या अर्थ है। शुरु में कई लोग ये समझ लेते है कि 14 चट्टानें खोज़ी गई है जिन पर अलग-अलग संदेश लिखे गए है, पर ऐसा नहीं है।
असल में 14 से कम ही ऐसी चट्टानें खोज़ी गई है जिन पर एक ही तरह के 14 लेख, जिन्हें आप संदेश, पैरा जा शिलालेख कह सकते है, खुदे हुए हैं।
सम्राट अशोक ने हज़ारो चट्टानों के टुकड़ों पर 14 नैतिक शिक्षा देते संदेश लिखवाए थे, जिनमें से कुछ चट्टानें ही हमें प्राप्त हुई है। ये चट्टानें पूरे भारतीय महाद्वीप के अलग-अलग स्थानों से मिली हैं।
लगभग सभी चतुदर्श शिलालेखों वाली चट्टानों पर 14 लेख क्रम अनुसार (Serial Wise) हैं। जो थोड़ी बहुत उल्ट-फेर है उसके बारे में नीचे बताया गया है।
सम्राट अशोक के चतुदर्श शिलालेख कहां-कहां से प्राप्त हुए हैं?
नीचे उन 10 स्थानों की जानकारी दी गई है जहां – जहां पर से सम्राट अशोक के चतुदर्श शिलालेख प्राप्त हुए हैं। इसके सिवाए ऊपर दी तस्वीर में भी आप उन स्थानों को देख सकते है, जहां-जहां से ये शिलालेख प्राप्त हुए हैं। (Major Rock Edicts – काले वर्ग (Black Square) वाले स्थान देखें)
- जौगढ़ – उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है।
- एरागुडि – आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित है।
- गिरनार – काठियाबाड़ में जूनागढ़ के पास है।
- सोपरा – महराष्ट्र के थाणे जिले में है।
- शाहबाज गढ़ी – पाकिस्तान (पेशावर) में है।
- मान सेहरा – पाकिस्तन के हजारा जिले में स्थित है।
- धौली – उड़ीसा के पुरी जिला में है।
- कालसी – वर्तमान उत्तराखण्ड (देहरादून) में है।
- कंधार – अफगानिस्तान में है।
- सन्नति – कर्नाटक राज्य का एक गांव।
Notes :
- 9वें लेख की अंतिम दो पंक्तियों की जगह धौली (7), गिरनार(3) और जौगढ़(1) के शिलालेखों में अन्य पंक्तियाँ जोड़ दी गई हैं।
- 13वें शिलालेख की अंतिम 6 पंक्तियाँ कालसी(8), गिरनार(3) और मान सेहरा(6) के शिलालेखों से मेल नहीं खातीं।
- मान सेहरा(6) और शाहबाज़ गढ़ी(5) में पाए गए शिलालेख की लिपि खरोष्ठी, कंधार(9) में पाए गए शिलालेख की ग्रीक और बाकी सब की ब्राह्मी है।
- धौली(7) और जौगढ़(1) के शिलालेख प्राचीन कलिंग या कह ले उड़ीसा क्षेत्र में पाए जाते हैं। इन दोनों स्थानों पर चतुदर्श शिलालेख के 11वें, 12वें और 13वें लेख के स्थान पर दो अतिरिक्त शिलालेख पाये जाते हैं। ये दोनों अतिरिक्त शिलालेख विशेष रूप से कलिंग के लोगों और वहां नियुक्त अफ़सरों या राज्यधिकारियों के लिए लिखे गये थे।
चतुदर्श शिलालेखों की शिक्षाएं या सम्राट अशोक के 14 शिलालेख
नीचे विस्तार से बताया गया है कि सम्राट अशोक के 14 शिलालेखों में क्या लिखा है। हेडिंग्स में हमने संक्षेप्त रूप से बताया है कि इनमें क्या दिया गया है और फिर लेख का अनुवाद विस्तार से किया है।
शिलालेख 1. इसमें पशु बलि की निंदा की गई
यह धर्मलेख देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा (अशोक) ने लिखवाया है। मेरे राज्य में किसी भी जीव की कुर्बानी ना दी जाए और ना ही ऐसे मेले या उत्सल आयोजित किए जाएं जिनमें हिंसा होती हो। क्योंकि देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ऐसे आयोजनों को बुरा मानते है। हांलाकि कुछ आयोजन उन्हें पसंद भी हैं जिनमें हिंसा नहीं होती। पहले राजा की पाकशाला में हर रोज़ कई हज़ार जीव सूप (शोरबा) बनाने के लिए मार दिए जाते थे, अब सिर्फ 3 ही मारे जा रहे हैं, इन्हें भी भविष्य में नही मारा जाएगा।
शिलालेख 2. समाज कल्याण, मनुष्य व पशु चिकित्सा
देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा के राज्य में सब जगह तथा जो सीमावर्ती राज्य हैं जैसे चोड़, पांड्य, सत्यपुत्र, केरलपुत्र, ताम्रपर्णी (श्रीलंका) तक और अन्तियोक नामक यवन-राज तथा उसके पड़ोसी राज्य (सीरीया) में देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने मनुष्यों तथा पशुओं के लिए चिकित्सा का प्रबंध किया है। मनुष्यों और पशुओं के लिए जिन स्थानों पर औषधियाँ पैदा नहीं होती थी, उन स्थानों पर उन्हें लाकर बीजा गया। जिन जगहों पर विशेष प्रकार के फलों के पौधें नही थे, उन्हें वहां लाकर बीजा गया। मार्गों में मनुष्यों और पशुओं के आराम के लिए कुँए खोदे गए और पेड़ लगाए गए।

शिलालेख 3. अशोक के तीसरे शिलालेख से ज्ञात होता है कि उसके राज्य में प्रादेशिक, राजूक , युक्तों को हर 5 वें वर्ष धर्म प्रचार हेतु भेजा जाता था
देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने राज्यभिषेक के 12 वर्ष बाद पूरे राज्य में युक्त, रज्जुक और प्रादेशक कर्मचारियों को अपने क्षेत्र में पांच साल में एक बार धर्म की शिक्षा देने, तथा इन शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए भेजा – (1) माता पिता की सेवा करना अच्छा है। (2) मित्र, जान-पहचान वालों, अपनी जाती वालों, ब्राह्मणों और श्रमणों (बौद्ध भिक्षुओं) को दान देना अच्छा है। (3) जीव हिंसा ना करना अच्छा है। (4) थोड़ा खर्चा करना तथा थोड़ा जमा करना अच्छा है। आमात्यों की परिषद् भी युक्त नामक कर्मचारियों को आज्ञा देगी कि वे इन नियमों के वास्तविक भाव के अनुसार इनका पालन करें।
(युक्त – युक्त अशोक के राज्य में एक प्रकार के राजकर्मचारी या अफसर थे। वे लोग जिले के एक भाग या तहसील के ऊपर नियुक्त थे। रज्जुक भी राज कर्मचारी थे।)
शिलालेख 4. भेरिघोष की जगह धम्म घोष की धोषणा
पिछले कई सौ सालों से मनुष्यों का वध, जीवों की हिंसा तथा ब्राह्मणों और श्रमणों का अनादर बढ़ता ही जा रहा था। पर आज देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा के धर्मचरण से भेरी (युद्ध के नगाड़े) का शब्द धर्म की भेरी के शब्द में बदल गया है। उनकी वजह से मनुष्यों के बीच हिंसा कम हुई है, जीवों की रक्षा हुई है, ब्राह्मणों तथा श्रमणों का सत्कार, माता-पिता की सेवा तथा बूढ़ों की सेवा बढ़ गयी है। ये धर्मचरण देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा के धर्मचरण के कारण बढ़ा है और वो इसे और भी बढ़ाएंगे। देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा के पुत्र, नाती-पोते, परपोते इस धर्मचरण को कल्प के अंत तक बढ़ाते रहेंगे और धर्म तथा शील का पालन करते हुए धर्म के अनुशासन का प्रचार करेंगे। क्योंकि धर्म का अनुशासन ही श्रेष्ट कार्य है। जो शीलवान् नहीं है वह धर्म का आचरण नहीं कर सकता। इसलिए इस धर्मचरण की वृद्धि करना तथा इसकी हानि ना होने देना अच्छा है। लोग इस बात की वृद्धि में लगें और इसकी हानि ना होने दें इसी उद्देश् से यह लिखा गया है। राज्याभिषेक के 12 साल बाद देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने यह लिखवाया।
(कल्प – हिंदू पांचांग के अनुसार काल या समय का एक बहुत बड़ा विभाग जो एक हजार महायुगों अर्थात् 4 अरब 2 करोड़ मानव वर्षों का कहा गया है।)
शिलालेख 5. धर्म महामत्रों की नियुक्ति
देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा कहते हैं कि अच्छा कर्म करना कठिन होता है पर उन्होंने बहुत से अच्छे कर्म किए हैं। अगर उनके पुत्र, पोते और बाकी की पीढ़ियां ऐसे ही अच्छे कर्म करते रहें तो उन्हें पुण्य प्राप्त होगा। अगर कोई इस कर्तव्य का थोड़ा सा भी त्याग करता है तो वो पाप का भागीदार होगा। प्रियदर्शी राजा ने धर्म-महामात्र अधिकारियों की नियुक्ती की है जो कि पहले नहीं होते थे। ये धर्म महामात्र सब संप्रदायों के बीच तथा यवन, काम्बोज और गंधार, राष्ट्रिक, पीतिनिक और पश्चिमी सीमा पर रहने वाली जातियों में धर्म की स्थापना, धर्म की वृद्धि तथा लोगों के हित और सुख के लिए नियुक्त हैं। वे स्वामी और सेवकों, ब्राह्मणों और धनवानों, अनाथों और वृद्धों, धर्मचरण का अनुसरण करने वाले लोगों के हित और सुख के लिए तथा उन्हें सांसारिक लोभ और लालसा की बेड़ी से मुक्त करने के लिए नियुक्त हैं। वे लोगों के साथ अन्याय रोकने के लिए, टोना, भूत प्रेत आदि बाधाओं से पीड़ित लोगों की रक्षा के लिए तथा उन लोगों का ध्यान रखने के लिए नियुक्त हैं जो बड़े परिवार वाले हैं या बहुत वृद्ध हैं। ये धर्म महामात्र मेरे जीते हुए प्रदेशों में सब जगह नियुक्त हैं और ये ध्यान रखते हैं कि धर्मनरागी लोग किसी प्रकार धर्म का आचरण करते है, धर्म में उनकी कितनी निष्ठा है और दान देने में वे कितनी रूचि रखते हैं। यह धर्मलेख इस उद्देश्य से लिखा गया है कि ये बहुत दिनों तक स्थित रहे और मेरी प्रजा इसके अनुसार आचरण करे।
शिलालेख 6. अशोक अपने राज्य के लिए कैसे कार्य करते थे
देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा कहते हैं कि अतीत में राज्य का काम ठीक तरह से नहीं होता था और ना ही गुप्तचरों से समाचार सुने जाते थे। इसलिए मैंने यह प्रबंध किया है कि हर समय चाहे मैं खाता होऊं या शयनगृह में होऊं या टहलता होऊं या सवारी पर होऊं या कूच कर रहा होऊं, सब जगह सब समय गुप्तचर आकर मुझे प्रजा का हाल सुनाएं। मैं प्रजा का काम सब जगह करता हुँ। यदि मैं स्वयं अपने मुख से आज्ञा दूं कि कोई दान किया जाए या कोई काम किया जाए, या महामात्रों को कोई आवश्यक भार सौंपा जाए और यदि उस विषय में कोई मतभेद उनमें हो जाए या मंत्रि-परिषद् उसे अस्वीकार करे, तो मैंने आज्ञा दी है कि (गुप्तचर) तुरंत ही हर घड़ी और हर जगह मुझे सूचना दे। क्योंकि मैं कितना ही परिश्रम करूँ और कितना ही राज-कार्य करूँ मुझे संतोष नहीं होता। क्योंकि सब लोगों का हित करना मैं अपना कर्तव्य समझता हुँ। मैं परिश्रम इसलिए करता हुँ कि प्राणियों के प्रति जो मेरा ऋण है उससे उऋण हो जाऊं और इस लोक में लोगों को सुखी करूं तथा परलोक में उन्हें स्वर्ग का लाभ कराऊं। यह धर्मलेख इसलिए लिखाया गया कि ये बहुत समय तक स्थित रहे और मेरे पुत्र तथा नाती पोते सब लोगों के हित के लिए परियास करें।
शिलालेख 7. सब लोगों में सद्भावना की अपील
देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा चाहते हैं कि सब जगह सब संप्रदाय के लोग एक साथ निवास करें। क्योंकि सब संप्रदाय संयम और चित्त की शुद्धि चाहते हैं। परंतु अलग-अलग मनुष्यों की प्रवृत्ति तथा रूचि भिन्न-भिन्न – अच्छी या बुरी, ऊंची या नीची होती है। वे या तो संपूर्ण रूप से या केवल एक अंश में अपने धर्म का पालन करेंगे। किंतु जो बहुत अधिक दान नहीं कर सकता उसमें संयम, चित्तशुद्धि, कृतज्ञजा और दृढ़ भक्ति का होना जरूरी है।
शिलालेख 8. अशोक द्वारा तीर्थ यात्राओ का वर्णन
अतीत काल के राजा महाराज जब यात्रा के लिए निकलते थे तो यात्राओं के दौरान शिकार वगैरह जैसे आमोद प्रमोद करते थे। पर जबसे देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने राज्याभिषेक के 10 साल बाद ज्ञान प्राप्ति के मार्ग का अनुसरण किया तो उनकी धर्मयात्राओं का प्रारंभ हुआ। इन धर्म-यात्राओं में ये होता है – ब्राह्मणों और श्रमणों का दर्शन करना और उन्हें दान देना, वृद्धों का दर्शन करना और उन्हें सुवर्ण दान देना, ग्रामवासियों के पास जाकर धर्म का उपदेश देना और धर्म-संबंधी चर्चा करना।
शिलालेख 9. सच्ची भेंट व सच्चे शिष्टाचार का वर्णन
देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ऐसा कहते हैं – लोग मुश्किल में, पुत्र तथा कन्या के विवाह में, पुत्र के जन्म के समय, परदेश जाने समय तता इसी तरह के दूसरे अवसरों पर कई तरह के ऊंचे और नीचे मंगलाचार करते हैं। ऐसे अवसरों पर स्त्रियां कई तरह के तुच्छ और निर्थक मंगलाचार करती हैं। पर ऐसे मंगलाचार अल्पफल देने वाले होते है पर जो धर्म का मंगलाचार है वो महाफल देने वाला है। इस धर्म के मंगलाचार में दास और सेवकों के प्रति उचित व्यवहार, गुरूओं का आदर, प्राणियों की अहिंसा और ब्राह्मणों तथा श्रमणों को दान तथा इसी प्रकार के दूसरे मंगलाचार कार्य होते हैं। इसलिए पिता या पुत्र या भाई या स्वामी को कहना चाहिए – “यह मंगलाचार अच्छा है, इसे तब तक करना चाहिए जब तक कि अभीष्ट कार्य सिद्ध ना हो जाय। कार्य की सिद्धि हो जाने पर भी मैं इसे फिर करता रहुँगा।” दूसरे मंगलाचार अनिश्चित फल देने वाले हैं। उनसे उद्देश्य की सिद्धि हो या न हो। वे इस लोक में ही फल देने वाले हैं। पर धर्म का मंगलाचार सब काल के लिए है। इस धर्म के मंगलाचार से इस लोक में अभीष्ट उद्देश्य की प्राप्ति न भी हो, तब भी अनंत पुण्य परलोक में प्राप्त होता है। परंतु यदि इस लोक में अभीष्ट उद्देश्य की प्राप्ति हो जाय तो धर्म के मंगलाचार से दो लाभ होंगे अर्थात् इस लोक में अभीष्ट उद्देश्य की सिद्धि तथा परलोक में अनन्त पुष्य की प्राप्ति।
[ये भी कहा गया है कि दान करना अच्छा है। किंतु कोई दान या उपकार ऐसा नहीं है जैसा कि धर्म का दान या धर्म का उपकार है। इसलिए मित्र, परिवार वालों और सहायकों को समय-समय पर कहना चाहिए कि “ये काम अच्छा है, ये काम करना चाहिए, ये कार्य करने से स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।” और स्वर्ग की प्राप्ति से बढ़कर इष्ट वस्तु क्या है?]
(जैसा कि हमने ऊपर बताया था कि 9वें लेख की अंतिम दो पंक्तियों की जगह धौली (7), गिरनार(3) और जौगढ़(1) के शिलालेखों में अन्य पंक्तियाँ जोड़ दी गई हैं। इन अन्य पंक्तियों को [] के बीच लिख दिया गया है। ऊपर जो भाग Mark किया गया है, वो लाइनें इन तीनों शिलालेखों में नहीं है।
शिलालेख 10. राजा व उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें
देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा, यश और कीर्ति को बड़ी चीज़ नहीं समझते। जो भी वो यश और कीर्ति चाहते हैं वो बस इसलिए कि उनकी प्रजा धर्म की सेवा करने तथा उसका पालन करने में उत्साहित हो। राजा सभी प्रयास परलोक के लिए करते हैं ताकि सब लोग दोष से रहित हो जाएं। जो अपुण्य है, वही दोष है। सब कुछ त्याग करके बड़ा प्रयास किये बना कोई भी मनुष्य चाहे वो छोटा हो या बड़ा, इस पुण्य कार्य को नहीं कर सकता। बड़े आदमी के लिए तो ये और भी कठिन है।

शिलालेख 11. धम्म की व्याख्या
देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ऐसा कहते हैं – कोई ऐसा दान नहीं जैसा कि धर्म का दान है, कोई ऐसी मित्रता नहीं जैसी कि धर्म की मित्रता है, कोई ऐसा बंटवारा नहीं जैसा कि धर्म का बंटवारा है, कोई ऐसा संबंध नहीं, जैसा कि धर्म का संबंध है। धर्म में ये होता है कि दास और सेवक के साथ उचित व्यवहार किया जाए, माता पिता की सेवा की जाय, मित्र, परिचित, जातिवालों तथा ब्राह्मणों और श्रमणों को दान दिया जाए और प्राणियों की हिंसा न की जाय। इसके लिए पिता, पुत्र, भाई, मित्र, परिचित, जातभाई और पड़ोसी को भी ये कहना चाहिए – “ये काम अच्छा है, ये काम करना चाहिए।” जो ऐसा करता है वो इस लोक को सिद्ध करता है और परलोक में भी उस धर्मदान से अनंत पुण्य का भागी होता है।
शिलालेख 12. सभी प्रकार के संप्रदायावालों के सम्मान की बात कही
देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा विविध दान और पूजा से गृहस्थ और संन्यासी सब संप्रदायावालों का सत्कार करते हैं, किंतु देवताओं के प्रिय दान या पूजा की इतनी परवाह नहीं करते जितनी इस बात की कि सब संप्रदायों के सार (तत्व) में बढ़ोतरी हो। संप्रदायों के सार में बढ़ोतरी कई प्रकार से होती है, पर उसकी जड़ है दूसरे संप्रदायों के बारे में बुरा न बोलना। ऐसा करने से मनुष्य अपने संप्रदाय की उन्नति और दूसरे संप्रदायों का उपकार करता है। दूसरे संप्रदायों के बारे में बुरा बोलने से व्यक्ति अपने संप्रदाय की जड़ काटता है। परस्पर मेलजोल से रहना ही अच्छा है अर्थात् लोग एक दूसरे के धर्म को ध्यान देकर सुनें और उसकी सेवा करें। क्योंकि देवताओं के प्रिय राजा की ये इच्छा है कि सब संप्रदाय वाले भिन्न-भिन्न संप्रदायों के सिद्धातों से परिचित तथा कल्याणकारक ज्ञान से युक्त हों।
शिलालेख 13. कलिंग युद्ध
राज्यभिषेक के 8 साल बाद देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने कलिंग पर जीत हासिल की। 1.5 लाख व्यक्ति कैद किए गए, 1 लाख लड़ते हुए मारे गए। इससे कई गुणा अधिक अन्य कारणों से मर गए। युद्ध के तुरंत बाद महामना सम्राट ने दया धर्म की शरण ली, इस धर्म से अनुराग किया और इसका सारे राज्य में प्रचार किया। इस भयंकर विनाश ने, जो किसी भी नए राज्य को जीतने में होता है, जबकि हज़ारों व्यक्ति मृत्यु के घाट उतार दिए जाते हैं और कैद कर लिए जाते हैं, सम्राट के ह्रदय को द्रवित कर दिया और पश्चाताप से भर दिया। यदि इतनी हत्याएं, मृत्यु और जीवित पकड़ने के दुःख का 100वां या 1000वां भाग भी कभी भविष्य में लोगों को होगा तो वह सम्राट के लिए महान शोक का कारण होगा। सम्राट को कोई दुःख भी पहुँचायेगा तो वे उसे यथासम्भव सहन करेंगे। जंगल में रहने वाले सभी प्राणियों पर सम्राट दया की दृष्टि रखेंगे। सबको आदेश है कि वे अपने विचार शुद्ध रखें, क्योंकि यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो उसका पश्चाताप सम्राट को करना होगा। वे हिंसक-वृत्तियों को त्याग दें जिससे जंगलों के प्राणी सताए ना जाएं। देवों के प्रिय सम्राट की ये अभिलाषा है कि संपूर्ण जीव मात्र सुरक्षित, नियमित, शांत और सुखी रहें।
(13वां शिलालेख बहुत विशाल है और इसको लेकर कई अन्य बातें हैं जो हम आपको ‘कलिंग युद्ध’ के लेख में बताएंगे। ऊपर इसका केवल संक्षिप्त रूप ही दिया गया है। इसके सिवाए धौली और जौगढ़ में 11,12 और 13वें शिलालेख की जगह क्या कहा गया है, ये भी हम आपको ‘कलिंग युद्ध’ के लेख में बताएंगे)
शिलालेख 14. धार्मिक जीवन जीने की प्रेरणा दी और इन लेखों के बारे में बताया
यह धर्म-लेख देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने लिखवाये हैं। यह धर्म-लेख कहीं संक्षेप में और कहीं विस्तृत रूप में हैं क्योंकि सब जगह सब लागू नहीं होता। मेरा राज्य बहुत विस्तृत है, इसलिए बहुत से लेख लिखवाये गये हैं और बहुत से लिखवाये जायेंगे। कहीं कहीं विषय की रोचकता के कारण एक ही बात को बार-बार कहा गया है, जिससे कि लोग उसके अनुसार आचरण करें। इस लेख में जो कुछ अपूर्ण लिखा गया हो उसका कारण संक्षिप्त लेख या लिखने वाले का अपराध समझना चाहिए।
Note : हमने सम्राट अशोक के सभी 14 शिलालेखों को लिखने के लिए विकीपीड़िया, प्राचीन भारत के इतिहास पर कुछ किताबों, Katinkahesselink.net वेबसाइट और सबसे महत्वूर्ण 1962 में छपी ‘अशोक के धर्मलेख’ पुस्तक की सहायता ली है। सम्राट अशोक के शिलालेखों वाली बाकी पोस्टें जरूर पढ़ें।
Khwaish uttam says
wrong informations .. ashok not believes in bhramin dhrm , he followed buddhism and buddhism came sharaman tradition and yeah sharaman tradition against vedic tradition (bhramin) ..you are misleading the students
Sahil kumar says
Can you prove that the brahmins are not mentions on his verdicts?
सुनीता सिंह says
कृपया बताएं कि – किस विजय के उपलक्ष्य में किस अभिलेख का निर्माण किया गया ?
सुनीता सिंह says
अशोक ने चौथे अभिलेख का निर्माण किस विजय के उपलक्ष्य में करवाया ?
Sahil kumar says
सुनीता जी, यह अभिलेख विजय के उपलक्ष्य में नहीं, बल्कि प्रजा को संदेश देने हेतु लगवाए गए थे।
नरेंद्र सिंह says
महोदय क्या सम्राट अशोक के शिलालेखों में कहीं पर संस्कृत के शब्द है क्या कहीं ब्राह्मण शब्द आया है बताने का कृपा करें
Sahil kumar says
नरेंद्र जी, अगर वो शिलालेख किस भाषा में लिखे गए हैं, इसके बारे में लेख में बताया गया है। अगर आप देवनागरी लिपि की बात कर रहे हैं, तो ऐसा नहीं है। हां शिलालेखों में ब्राहम्ण शब्द का उल्लेख है।
एकांश सिंह कुशवाहा says
सम्राट अशोक ने हाथी गुफा अभिलेख मे क्या लिखवाया था
Sahil kumar says
वो अभिलेख उन्होंने नहीं लिखवाया था।
Abhishek Kushwaha says
Unke bare me to tha na
ARVIND NEGI says
Sir ji pranam..
Hame stambh lekh and gupha lekh ki link send kar dijiye plz
Rahul jadhav says
sahil ji website yaa blog banane me kitna kharch ata hai Reply
Sahil kumar says
Agar rochhak.com jaise banani hai to saal ka 4000-5000 to aa hi jayega.